चितवनिया थारु भाषा क कथा ......
"गिद्वार मित"
पहिन पहिन(यगति) पशु-पन्छि जनावर सबह फेरी मनसे नहिया फदकई हलई एक दुस्सरासे मित हसे संग लग्वई हलि वसने कके यगुठी मनेवा(मनसे) गिदरा से मित लगाेले रहलि.. वसने करममा I एक दिन मनेवा गेलिया यापन दुलहियाके लेले खेतवमा यालाे राेपे.. (तखनहि यालाे राेपके सिजन हलि) हत् राेपई हलिया ..झाेक लगाके..तखनहि झुलमुलुक धरे गिद्वार मित पु्ग्लिया हसे गिद्वार मित पुछेलगलि I
गिद्वार मित : अजि मितववा कथि राेपई जे
मनेवा : अजि कथि कहबहि यालाे राेपई बड्सु I
गिद्वार मित : यह तबअ उसिनके राेपई की काचे जि I
मनेवा : काचे राेपई बडहु दुनुहु बेगति मिलके I
(याबे नावे गिद्वरा तावे गिद्वरा हसे यापन दिमाक लगावे लगलिया )
गिद्वार मित : अजि कहवा काचे राेपई जे उसिन के राेपले ना गहनु यलाैवा पहरलहि I
मनेवा : नजि लाे तबअ आेसने करबसु ..... जाे तरि उसिनके यनहि यलाैवा डहुल बुद्वि सिखादेले बडिहे मितवा I
यते गिद्वार मित मने-मने खुसि भेलिया हसे मनेवा क दुल्हिया यलाैवा उसिन के यनलिया वकर पाछा राेपे लगलि राेपराप के घर गेलि I
यते गिद्वरा ईसियाई हलि कखनि घर जेतई कहके घर जईतेक यनमाने (उसनलि यलीैवा)खेतवमा जा के खाए लगलि .. खईते हसे हगते मटियासे पुरते खईते हगते पुरते करे लगलि वकर पाछा ह त बिहान हखे लगलि गिद्वरा ढिण फुलाके घर करे यईलि I
यतुरेमा बिहान भेलि बिहना मुह कान धाे के मनेवा साेचे लगलि "कालु गिद्वार मित कहले हलिया उसिनके यालाे राेपले जबहट पहरलहि उहेसे जाई पर्लि हे हेर कतहरमहे पहरलई" एतुरा कहके गेलि हेरे I जाईक माहा यलाैवाक डेंग्वा खाेहारे लगलि जहवा खाेहरै जम्मै गिद्वारेक गुह भर हाथ लगई I
यतुरा देखके कहेलगलि हाेईन हाेई ईया गिद्वार मित क काम हलई कहके फिरलि फिरहिकि माहाँ घरवमा देखलि गिद्वरा ढिण फुलाके सुतल.. यतुरा देख्तेके यनमाने उठाेलि डन्टा बेदगावे लगलि पुगादेलि बन I
तखनिसे गिद्वरा सबह बनवै बनवा रहेसई हसे उहेसे कबहु कालि ..... मितवाके हाेहकारा देसई ... मितवा हाेेवववव मितवववा ...
काथा वराट .भेलई.. "
लेखक सूर्य चाैधरी "