आई गील दौरल दिया देवारी।।
ओराईल नै हो खेत्वाक बेगारी।।
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बारब जग मग चारू ओर दिया।
घोटैल करधरी सब कोई घरबारी।।
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देवारी हो कैहके जुवा नखेल्हो कोई।
घरजग्गा चलजाई दुख मिली भारी।।
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हाँसी खेली जा बा ऊ खाई खवाई।
फालतु मनमे पलाईल ईच्छा मारी।।
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☆ गजल ☆
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#असिराम डंगौरा