एक दिन ऊ मोर झोपरी देख्लिन् । झेन्द्री झेन्द्रा लुग्लक् पोकरी देख्लिन् । ओहे दिनसे मैयाँ मार देलिन मोर, जहिया इँट्टा बोक्ना टोकरी देख्लिन् ।।
~ सत्यनारायण दहित
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