जिन्दगी चलल गन्तब्य होर, बचपन छोर्के

Tuesday, 28 February 20170 तपाइको प्रतिकिया ब्यक्त गर्नुस

Posted By :- Admin {Hamar Sanesh}

[[गजल]]
"
जिन्दगी चलल गन्तब्य होर, बचपन छोर्के।
कुछ दिन और हुई बाँकी,जैना गगन छोर्के।

रमैटी मजा लागे संघर्यानसे,घर बुक्रि खेल्टी।
आई जाब पक्रे डाई,भागी भाँरा बर्तन छोर्के।

समयक चाहना पुरा करक लाक,पैंसा खोज्टी।
बहुट् दुर आईगिनु घर परिवार सक्कुहन् छोर्के।

मन'क भिट्टर ब्यथा पिरके,जर हुके हुई सायद।
रोईनास लागठ बहुत जोर,,गठन,मठन् छोर्के।

मोर्फे उहे हाल कैल समय,डाई बाबा छुटाके।
जस्ट की पट्याहे गिराके,चलल पवन छोर्के।
"
अमिन बर्दियाली
हाल आनेक देश : अरब

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