बर्खिमार से सजना मैना सुनैठा साहा हजुर।
झुलल धानक बाला दुख नुकैठा साहा हजुर।।।
हात ग्वारा कुहा कुहा करल खेती जब सप्रठा।
हो खेत्वम कत्नि बोक्निम भुलैठा साहा हजुर।।
अारीम का बैस्ना धानक निन्हा पली पली फेर।
जार व धन्यक चट्नि वाह! सुहैठा साहा हजुर।।
कात्ख सेको धान जब अौली खाव सक्कु होर।
पेन्ड्या ठेसे लौव चाउर उ कुटैठा साहा हजुर।।
धान झत्कने माला लग्ना बिहिनिय जार जारम।
भर बखारी कृषन्वक मन फे बुझैठा साहा हजुर।।
गजल प्रेषक मित्र
राज दङ्गाली # Raj Dangali
तुल्सिपुर दाङ