भुलादेहि यापन आत्मासे तुई,
मोर नाउँ क हरेक अक्षर ।
जोरले हल्सु तोर नाउँमा मोर नाउँ ,
बाकी मेटादेहि उअ दुनु अक्षर ।।
दोष तोरे न मोरो हैइने ,
शंका शंकामा लङ्का जरोलही ।
दुनुजानाक मायामा आगिक फुनगि
कहवासे कस्के जे परोलही ।।
उठओलाही धिधोर ई जिनगीमा ,
जरजार के याजु धुवाँमा उडउलाही ।
पछियक वयार कहसाउ खुभे सुख्खा
परल मायामा तुई पानी फेरोलही ।।
चैत यावके बहुते तनाउ ,
भादोमा सुखेलउ रोपल फुला ।
बसन्त ॠतुक बहार साङे ,
मुरझाईल गेलउ मायाक फुला ।।
चितवनिया थारु भाषाक कबिता लेखक: धन्नराज महताे
Dhanraj Mahato
Chitwan