मनु चौधरी,,
पहिल चोटि भेटे गेल्सु ,हथवामा फुला हलउ .....!
मनवामा जागल उमङ्ग ,जसने झुला हलउ ......!
छोटे-छोटे डगर बिच साको हेलके....!!
बिछराके गिरलसु जहवा,कुला हलउ.......!
ढबसही गिरलसु जसने,केराक थामा.....!
वातसे दगुरइकि येलिहे,जबणि मामा.....!
"कस्के जि भान्जा" कहके उठाेलिहे मोरके.....!!
झबझब भिजलउ पेहरलि, लुगवा जामा.....!
सोईफोई सोईफोई हरियलसु ,हतारेक मारे.....!
भर पैडा सोचई हल्सु ,ओकरे बारे....!
रुपरङ छबिगर हखिहे स्वोर्गक परि नहिया.....!!
जोन्ह तरङन झिन हखिहे ओकर,रुपक तारे....!
डहुल मौसम, सितर बयार,फरल, कोठहि हलिहे....!
उहोत लाजे मुणिया लोकाके नहुवा,खोटई हलिहे....!
आँखीया बन्द,सास बन्द मुर्छा पर्लसु मुईत....!!
शङहि खेलाईल छोटेक उअत, पोटहि हलिहे.....!
लेखक= मनु चौधरी (हाजिपुर)