फुला कबहुन फुल्झार हखो तोर फुल्वारि न हखिहे सुनसान

Monday, 12 December 20160 तपाइको प्रतिकिया ब्यक्त गर्नुस

Posted By :- Admin {Hamar Sanesh}

~गजल~

फुला कबहुन फुल्झार हखो तोर फुल्वारि न हखिहे सुनसान।
रङ रुप हसे तोर पहिरन थारु क कसके करु मुई बखान।

तुहि हलही मोर जिनगिमा उल्हासे मन मुई खुसी देखार हलही।
जब तुहि भगलही मोर जिनगिसे देखे नाही सको बेहाल भेलही।

तनाउ बणहु तुई हसे मुई माया बैसल हलई उअ जुनवामा।
मिलन हसे बिछोण भेलउ बाचा,कसम टुर्लही नारायणी क पुलवामा।

पन्छी कतुरो उणेईहे आकासमा आखिर कर्बिहे धर्ती मा बाँस।
डहुल पैणा गलत धङ्लही पाछा लगलउ तोर नर पिचास।

गिर पर गेलसु कहवा कहवा उझिट पर मुई जाही।
जहवा,जहवा जाही वहवाही ठक्कर मुई खाही।

फुलाईल तोरि खर्झार भेलउ ध्वाखा पा के भेलसु पागल।
निस्ठुरी हैनो मोर दिल जब खोजे गेलसु तुइ वहवा से भागल।

                                              # Chitwan Chhannu
                                                 खैरहनी न. पा.~१,बहेरा

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