●^-^ 'थारु भाषाक गजल' ^-^●
मोरके समझ समझ के झिन कनसी अब
मोर से आको डउल मरदाना छनसी अब
मन भेलेसे हैने रे...,सम्पति हसे धन चाँही
आपन बाबा दाउ क कहली मानसी अब
धनि गरीब भेदभाबमा चलसै यी समाज
मुई लायक हैने रे तोर लागी जनसी अब
हर्ष उल्हास, सुख से बितोस तो जिन्दगी
दोसर जनाके आपन सर्बोच्चो ठनसी अब
मोरके समझ समझ के झिन कनसी अब
मोर से आको डउल मरदाना छनसी अब
✒ नबिने चौधरी (चितवन नेपाल)